इन दिनों मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं हो रहा। कभी बनता काम बिगड़ जाता है, तो कभी सड़क चलते कोई भी लड़ लेता है। चार रोज हुए, उल्टे पैर की कन्नी उंगली में ऐसी चोट लगी कि दिन में चांद-सितारे नजर आने लगे। जैसे-तैसे उससे करार पाया तो अभी कोई फुटबॉल चुरा ले भागा। कल जेब से पांचों का नोट गिरकर जाने किस का भला कर गया।
आलम यह है कि अब तो खुद की शक्ल आईने में देखने से घबराने लगा हूं, क्या पता, आईना ही कहीं टेढ़ा-मेढ़ा न हो जाए!
शहर के सबसे समझदार ज्योतिष को अपना हाथ दिखाया तो उन्होंने मेरे ग्रहों का चाल-चलन दुरुस्त न बताकर दो हजार रुपए सीधे कर लिए। साथ में एक उपाय और बता दिया कि रोज आधी रात के बाद गधे की पूंछ के चार बाल तोड़कर शमशान की मिट्टी में गाड़ दूं। लेकिन इस बात का खास ख्याल रखूं कि गधा हर बार अलग होना चाहिए।
अब मेरा कोई गधों का कारोबार तो है नहीं कि हर रोज एक नया गधा मिल जाएगा। यों भी, शहर में हर रोज एक नए गधे को ढूंढना, सड़क पर गड्ढे ढूंढने से भी ज्यादा कठिन काम है। शहरी गधे देहाती गधों के मुकाबले यों भी सयाने होते हैं।
अतः ज्योतिष महाराज के उपाय से अपना पिंड छुड़ाया।
बहुत सोचने पर मैंने पाया कि ये सब मेरे 'ग्रह-दोष' के कारण न होकर मेरे 'पाप का घड़ा' भरने की वहज से है। मतलब- मेरे पापों का घड़ा भर चुका है। जब पाप का घड़ा ओवरफ्लो होने लगता है तब जीवन में ऐसी खतरनाक किस्म की घटनाएं होने लगती हैं।
यह बात अलहदा है कि किसी के पाप का घड़ा देर से भरता है तो किसी का जल्दी। लेकिन भरता अवश्य है, यह तय है।
मगर मैं मेरे पापों का घड़ा भरने से परेशान कतई नहीं हूं। बल्कि खुश ही हूं कि चलो, पाप का घड़ा मेरी उम्र के चालीसवें बसंत में ही भर गया। वरना तो लोगों के पापों का घड़ा अस्सी-नब्बे साल की उम्र तक भी न भर पाता। यह ऊपर वाले की मुझ पर अतिरिक्त कृपा रही। मैं उसका ऋणी हूं।
समय रहते जो काम निपट जाए उसी में भलाई है। मैं भी कब और कहां तक अपने पाप का घड़ा यहां-वहां लिए-लिए घूमता।
अब जबकि मेरे पाप का घड़ा भर ही चुका है, तो मैंने हर किसी से डरना भी छोड़ दिया है। यहां तक की बीवी से भी। पहले तो अनजाने डर के कारण से उसे मैं जबाव भी नहीं दे पाता था, मगर अब तुरंत दे देता हूं। ऑफिस में बॉस को भी जब मौका पड़ता है, खरी-खोटी सुना डालता हूं। मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाते। बस मन मसोस कर रह जाते हैं।
ऐसा लोगों का भरम है कि पाप का घड़ा भरना बुराई का प्रतीक है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। पाप का घड़ा भरते ही बंदा एकदम निडर टाइप हो लेता है। बिल्कुल मेरी तरह।
कम उम्र में पाप का घड़ा भर जाने का सबसे बड़ा फायदा यही मिलता है कि ज्यादा बड़े घड़े की जुगाड़ नहीं करनी पड़ती। छोटे घड़े से ही काम चल जाता है।
इतने ज्यादा पापों से भी क्या हासिल कि अतिरिक्त घड़े की व्यवस्था करनी पड़े। कम पाप, छोटा घड़ा।
पहले के मुकाबले आज के समय का इंसान ज्यादा समझदार है। वक्त से पहले ही अपने पापों का घड़ा भर जीवन से मुक्ति पा लेता है। किया भी क्या जाए; अब पाप ही इतने तरह के होने लगे हैं। पाप भी ऐसे-ऐसे की दांतों तले उंगली दबा ले।
बहरहाल, जिनके पापों का घड़ा जल्दी भर गया है, वे मेरी तरह जश्न मना सकते हैं। बाकी अपने घड़ों के भरने का इंतजार करें।
आलम यह है कि अब तो खुद की शक्ल आईने में देखने से घबराने लगा हूं, क्या पता, आईना ही कहीं टेढ़ा-मेढ़ा न हो जाए!
शहर के सबसे समझदार ज्योतिष को अपना हाथ दिखाया तो उन्होंने मेरे ग्रहों का चाल-चलन दुरुस्त न बताकर दो हजार रुपए सीधे कर लिए। साथ में एक उपाय और बता दिया कि रोज आधी रात के बाद गधे की पूंछ के चार बाल तोड़कर शमशान की मिट्टी में गाड़ दूं। लेकिन इस बात का खास ख्याल रखूं कि गधा हर बार अलग होना चाहिए।
अब मेरा कोई गधों का कारोबार तो है नहीं कि हर रोज एक नया गधा मिल जाएगा। यों भी, शहर में हर रोज एक नए गधे को ढूंढना, सड़क पर गड्ढे ढूंढने से भी ज्यादा कठिन काम है। शहरी गधे देहाती गधों के मुकाबले यों भी सयाने होते हैं।
अतः ज्योतिष महाराज के उपाय से अपना पिंड छुड़ाया।
बहुत सोचने पर मैंने पाया कि ये सब मेरे 'ग्रह-दोष' के कारण न होकर मेरे 'पाप का घड़ा' भरने की वहज से है। मतलब- मेरे पापों का घड़ा भर चुका है। जब पाप का घड़ा ओवरफ्लो होने लगता है तब जीवन में ऐसी खतरनाक किस्म की घटनाएं होने लगती हैं।
यह बात अलहदा है कि किसी के पाप का घड़ा देर से भरता है तो किसी का जल्दी। लेकिन भरता अवश्य है, यह तय है।
मगर मैं मेरे पापों का घड़ा भरने से परेशान कतई नहीं हूं। बल्कि खुश ही हूं कि चलो, पाप का घड़ा मेरी उम्र के चालीसवें बसंत में ही भर गया। वरना तो लोगों के पापों का घड़ा अस्सी-नब्बे साल की उम्र तक भी न भर पाता। यह ऊपर वाले की मुझ पर अतिरिक्त कृपा रही। मैं उसका ऋणी हूं।
समय रहते जो काम निपट जाए उसी में भलाई है। मैं भी कब और कहां तक अपने पाप का घड़ा यहां-वहां लिए-लिए घूमता।
अब जबकि मेरे पाप का घड़ा भर ही चुका है, तो मैंने हर किसी से डरना भी छोड़ दिया है। यहां तक की बीवी से भी। पहले तो अनजाने डर के कारण से उसे मैं जबाव भी नहीं दे पाता था, मगर अब तुरंत दे देता हूं। ऑफिस में बॉस को भी जब मौका पड़ता है, खरी-खोटी सुना डालता हूं। मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाते। बस मन मसोस कर रह जाते हैं।
ऐसा लोगों का भरम है कि पाप का घड़ा भरना बुराई का प्रतीक है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। पाप का घड़ा भरते ही बंदा एकदम निडर टाइप हो लेता है। बिल्कुल मेरी तरह।
कम उम्र में पाप का घड़ा भर जाने का सबसे बड़ा फायदा यही मिलता है कि ज्यादा बड़े घड़े की जुगाड़ नहीं करनी पड़ती। छोटे घड़े से ही काम चल जाता है।
इतने ज्यादा पापों से भी क्या हासिल कि अतिरिक्त घड़े की व्यवस्था करनी पड़े। कम पाप, छोटा घड़ा।
पहले के मुकाबले आज के समय का इंसान ज्यादा समझदार है। वक्त से पहले ही अपने पापों का घड़ा भर जीवन से मुक्ति पा लेता है। किया भी क्या जाए; अब पाप ही इतने तरह के होने लगे हैं। पाप भी ऐसे-ऐसे की दांतों तले उंगली दबा ले।
बहरहाल, जिनके पापों का घड़ा जल्दी भर गया है, वे मेरी तरह जश्न मना सकते हैं। बाकी अपने घड़ों के भरने का इंतजार करें।
1 टिप्पणी:
अति सुन्दर । मेरी सोच है कि पाप का घड़ा बड़ा होता है, इससे देर से भरता है। क्या सभी को लगता है कि पुण्य और पाप के घड़े छोटे बड़े हैं ।
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